क्या आप जानते हैं की कागजी नींबू के क्या होते हैं असरकारी गुण?
8 months ago Harish chandra
डॉ० हरीश चन्द्र अन्डोला दून विश्वविद्यालय, देहरादून, उत्तराखंड
हिमालयी राज्य उत्तराखंड में आज पलायन एक बड़ी समस्या बन चुकी है. गांव के गांव खाली होते जा रहे हैं खेत-खलिहान बंजर हो रहे हैं और आबाद क्षेत्र अब वीरान हो रहे हैं. पलायन रोकने की कोशिश तो बहुत हो रही लेकिन चुनौतियां प्रयासों पर भारी पड़ती नज़र आ रही हैं. उत्तराखंड से राज्यसभा सांसद अनिल बलूनी ने इस दिशा में केंद्र से विशेष सहयोग मांगा है प्रदेश में पोषक तत्वों से भरपूर मोटे अनाजों का रकबा लगातार घटता जा रहा है। हिमालय में ऊर्जा के स्रोत माने जाने वाले विश्व में सबसे अधिक नीबू का उत्पादन भारत में होता है। यह विश्व के कुल नीबू उत्पादन का १६ प्रतिशत भाग उत्पन्न करता है। मैक्सिको, अर्जन्टीना, ब्राजील एवं स्पेन अन्य मुख्य उत्पादक देश हैं। दाहिनी ओर विश्व के दस शीर्ष नीबू उत्पादक देशों की सूची है (२००७ के अनुसार)। नीबू, लगभग सभी प्रकार की भूमियों में सफलतापूर्वक उत्पादन देता है नीबू अधिकांशत: उष्णदेशीय भागों में पाया जाता है। इसका आदिस्थान संभवत: भारत ही है। यह हिमालय की उष्ण घाटियों में जंगली रूप में उगता हुआ पाया जाता है तथा मैदानों में समुद्रतट से 4,000 फुट की ऊँचाई तक पैदा होता है।
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इसकी कई किस्में होती हैं, जो प्राय: प्रकंद के काम में आती हैं, उदाहरणार्थ फ्लोरिडा रफ़, करना या खट्टा नीबू, जंबीरी आदि। कागजी नीबू, कागजी कलाँ, गलगल तथा लाइम सिलहट ही अधिकतर घरेलू उपयोग में आते हैं। इनमें कागजी नीबू सबसे अधिक लोकप्रिय है। इसके उत्पादन के स्थान मद्रास, बंबई, बंगाल, पंजाब, मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र हैदराबाद, दिल्ली, पटियाला, उत्तर प्रदेश, मैसूर तथा बड़ौदा हैं। अपने गुणों के कारण भारत में कागजी नींबू की खेती काफी लाभप्रद है। इसके लिए पूसा इंस्टिट्यूट द्वारा उत्पन्न की गई पूसा अभिनव और पूसा उदित सबसे बेहतर किस्में हैं। ये एक वर्ष में दो बार, अगस्त-सितंबर और मार्च-अप्रैल के बीच तैयार होती हैं। नीबू की उपयोगिता जीवन में बहुत अधिक है। इसका प्रयोग अधिकतर भोज्य पदार्थों में किया जाता है। इससे विभिन्न प्रकार के पदार्थ, जैसे तेल, पेक्टिन, सिट्रिक अम्ल, रस, स्क्वाश तथा सार (essence) आदि तैयार किए जाते हैं। कागजी नींबू इसका वैज्ञानिक नाम सिट्रस मैक्सिमा है, जो रूटेसी कुल का सदस्य है। नींबू जाति का खट्टा फल है। इसके फल 2.5–5 सेमी व्यास वाले हरे या पीले (पकने पर) होते हैं। इसका पौधा ५ मीटर तक लम्बा होता है जिसमें कांटे भी होते हैं।स्कर्वी रोग में नींबू श्रेष्ठ दवा का काम करता है।
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नींबू सदाबहार सर्वोत्तम रोगनाशक व आरोग्य एवं सौंदर्य प्रदाता है। नींबू की कई किस्में हैं। सभी किस्म उपयोगी व फलदायी हैं। बीते दिनों भारी बारिश और ओलावृष्टि के कारण उनकी फसल को बड़े पैमाने पर नुकसान पहुंचा है। उन्होंने कहा कि संतरा, माल्टा, कागजी नींबू, बड़ा नींबू, अमरूद बेचकर लोग किसी तरह अपनी आजीविका चलाते हैं, लेकिन ओलावृष्टि ने उनके अरमानों पर पानी फेर दिया है। लोगों ने कहा कि एक ओर जहां दैवीय आपदा के कारण उनको भारी नुकसान झेलना पड़ रहा है वहीं रही सही कसर जंगली जानवर पूरी कर रहे हैं। भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान (पूसा) के वैज्ञानिक के बताया कि किसान को 'अन्न उत्पन्न करने वाली सोच' की बजाय 'व्यावसायिक सोच' को अपनाना चाहिए। जैसे कोई किसान एक एकड़ भूमि पर गेंहू या चावल जैसी फसल का उत्पादन करके अधिकतम पचास से साठ हजार रूपये का लाभ कमा पाता है, लेकिन इसी भूमि पर अगर वह नींबू की व्यावसायिक खेती वैज्ञानिक प्रबंधन के माध्यम से करता है तो सभी खर्चे काटने के बाद वह प्रति एकड़ न्यूनतम दो लाख रूपये से लेकर चार लाख रूपये वार्षिक आय का शुद्ध लाभ कमा सकता है।
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नींबू पानी को अगर देशी कोल्ड्रिंक कहा जाए, तो इसमें कुछ गलत नहीं होगा। प्रोटीन, कार्बोहाइड्रेट, विटामिन और मिनरल्स से भरपूर यह पेय सेहत और सौंदर्य से जुड़े इतने फायदे देता है, नींबू पानी के कुछ ऐसे ही फायदे जो सेहत के लिए बेहद लाभदायक हैं नींबू विटामिन सी का बेहतर स्रेत है। साथ ही, इसमें विभिन्न विटामिन्स जैसे थियामिन, रिबोफ्लोविन, नियासिन, विटामिन बी- 6, फोलेट और विटामिन-ई की थोड़ी मात्रा मौजूद रहती है। यह खराब गले, कब्ज, किडनी और मसूड़ों की समस्याओं में राहत पहुंचाता है। साथ ही ब्लड प्रेशर और तनाव को कम करता है। त्वचा को स्वस्थ बनाने के साथ ही लिवर के लिए भी यह बेहतर होता है। पाचन क्रिया, वजन संतुलित करने और कई तरह के कैंसर से बचाव करने में नींबू पानी मददगार होता है। नींबू पानी में कई तरह के मिनरल्स जैसे आयरन, मैग्नीशियम, फास्फोरस, कैल्शियम, पोटैशियम और जिंक पाए जाते हैं।नींबू पानी का स्वास्थ्य पर पड़ने वाला सबसे महत्वपूर्ण फायदा है, इसका किडनी स्टोन से राहत पहुंचाना। मुख्यरूप से किडनी स्टोन शरीर से बिना किसी परेशानी के निकल जाता है, लेकिन कुछ मामलों में यह यूरीन के बहाव को ब्लॉक कर देते हैं जो अत्यधिक पीड़ा का कारण बनता है। नींबू पानी पीने से शरीर को रिहाइड्रेट होने में मदद मिलती है और यह यूरीन को पतला रखने में मदद करता है। साथ ही यह किडनी स्टोन बनने के किसी भी तरह के खतरे को कम करता है। नींबू पानी, हाई शुगर वाले जूस व ड्रिंक का बेहतर विकल्प माना जाता है। खासतौर से उनके लिए जो डायबिटीज के मरीज हैं या वजन कम करना चाहते हैं। यह शुगर को गंभीर स्तर तक पहुंचाए बिना शरीर को रिहाइड्रेट व एनर्जाइज करता है।
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नींबू पानी में मौजूद नींबू का रस हाइड्रोक्लोरिक एसिड और पित्त सिक्रेशन के प्रोडक्शन में वृद्धि करता है, जो पाचन के लिए आवश्यक है। साथ ही यह एसिडिटी और गठिया के खतरे को भी कम करता है। जो लोग आमतौर पर पाचन-संबंधी समस्याओं जैसे एबडॉमिनल क्रैम्प्स, ब्लॉटिंग, जलन और गैस की समस्या आदि से परेशान होते हैं, उन्हें नियमित रूप से नींबू पानी का सेवन करना चाहिए।कागजी नींबू के पेड़ पर साल भर फूल और फल आते है, लेकिन केवल गर्मी के मौसम में ही किसान को उनकी उपज की अच्छी कीमत मिलती है। इसलिए गर्मियों में अधिकतम उपज लेने के लिए हस्त बहार की योजना बनानी चाहिए। हस्त बाहर के प्रबंधन में सबसे बड़ी समस्या यह है कि अधिक फूल प्राप्त करने के लिए पेड़ों को ताव (पानी बन्द करना) देना होता है जो अगस्त-सितंबर माह में होने वाली अप्रत्याशित वर्षा के कारण मुश्किल होता है। कोविड-19 के कारण उत्तराखण्ड वापस लौटे लोगों को स्वरोजगार के अवसर उपलब्ध कराने के उद्देश्य से शुरू की गई है. इससे कुशल और अकुशल दस्तकार, हस्तशिल्पि और बेरोजगार युवा खुद के व्यवसाय के लिए प्रोत्साहित होंगे. राष्ट्रीयकृत बैंकों, अनुसूचित वाणिज्यिक बैंकों और सहकारी बैंकों के माध्यम से ऋण सुविधा उपलब्ध कराई जाएगी. राज्य सरकार द्वारा रिवर्स पलायन के लिए किए जा रहे प्रयासों में योजना महत्वपूर्ण सिद्ध होगी. विश्व धरोहर फूलों की घाटी हर वर्ष एक जून को देशी-विदेशी पर्यटकों की आवाजाही के लिए खुलती रही है लेकिन इस वर्ष कोरोना की छाया फूलों की घाटी पर पड गई है।
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राज्य के अन्य पार्को की ही तरह फूलां की घाटी राष्ट्रीय पार्क को भी पर्यटकों की आवाजाही के लिए नही खोला जा सका है। हालांकि समस्या के निदान के लिए सरकार द्वारा परंपरागत पसलों का समर्थन मूल्य घोषित करने के साथ ही विपणन की कारगर व्यवस्था के तहत छोटी-बड़ी मंडियां विकसित करने, मोटे एवं नकदी अनाजों का क्रय करने, इनकी खरीदारी के लिए स्वयं सहायता समूहों को बोनस देने की पहल तो की जा रही है, कागजी नीबू का समर्थन मूल्य घोषित करने के साथ ही विपणन की कारगर व्यवस्था पहल तो मददगार होता.
इस लेख में दिए गए विचार लेखक के हैं।
लेखक द्वारा उत्तराखण्ड सरकार के अधीन उद्यान विभाग के वैज्ञानिक के पद पर का अनुभव प्राप्त हैं, वर्तमान में दून विश्वविद्यालय में है.